महाराजा अग्रसेन जी का संक्षिप्त जीवन परिचय
नाम- – कुंवर अग्रसेन (महाराजा अग्रसेन)
जन्म- – शुक्लपक्ष प्रतिपदा, अश्विनमास
जन्म भूमि– – प्रतापगढ
पिता– – महाराजा श्री वल्लभसेन जी
माता– – महारानी भगवती देवी जी
शिक्षा– – उज्जैन के ताण्डव आश्रम में
पत्नी- – महारानी माधवी जी
संतान– – 18 पुत्र एवं 1 पुत्री –
गद्दी- – अग्रोहा, हरियाणा
कुलदेवी– –हरिप्रिया महालक्ष्मी
कुलदेवता– – भगवान विश्वनाथ
वंश– – सूर्यवंश
राजवंश– – अग्रवंश
कुलगुरु– – महर्षि गर्ग
धार्मिक– – मान्यता हिंदू धर्म
युद्ध– – महाभारत युद्ध
पूर्वाधिकारी– – महाराजा वल्लभसेन –
उत्तराधिकारी– – महाराजा विभुसेन
ध्वज- – पीत वर्ण सूर्य पताका
राज चिन्ह– – एक स्वर्णमुद्रा और एक ईंट
यज्ञों की संख्या– – 18 यज्ञ
महाराजा अग्रसेन का जन्म काशी विश्वनाथ के आशीर्वाद से उनके अंश से हुआ था अतः उन्हें शिव रूपाय कहते हैं। महाराजा अग्रसेन ने मात्र 16 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ महाभारत युद्ध में भाग लिया था। इन्हें श्री कृष्ण का सानिध्य और आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ था। महाराजा अग्रसेन का विवाह त्रिपुरा के शक्तिशाली नागवंश की राजकुमारी महारानी माधवी से हुआ था। महाराजा अग्रसेन के स्वसुर नागराज महीधर ने सूर्यवंशियों और नागवंशियों के मेल की यादगार स्वरूप और महाराजा अग्रसेन के सम्मान में अग्रतल बसाया था जिसे आज अगरतला कहते हैं जो त्रिपुरा की राजधानी है।
महाराजा अग्रसेन के राजकुमारी माधवी से विवाह से देवराज इंद्र को ईर्ष्या हुई और उन्होंने अग्रोहा गणराज्य में वर्षा बंद कर दी। तदोपरांत कुलदेवी महालक्ष्मी के आशीर्वाद से महाराजा अग्रसेन ने इंद्र का मानमर्दन किया था। महाराजा अग्रसेन वंशकर राजा थे, अर्थात जिसके नाम से उसके कुल को जाना जाए। इससे पूर्व इक्ष्वाकु वंश में रघु वंशकर राजा हुए हैं जिनके नाम पर इस कुल का नाम रघुकल भी है। श्री अग्रसेन कुलदेवी महालक्ष्मी के अनन्य भक्त थे उन्होंने अपने जीवनकाल में तीन बार महालक्ष्मी को प्रसन्न करके उनसे वर हासिल किया था। उन्होंने राज्य के मध्य में एक भव्य रत्नजड़ित श्रीपीठ का निर्माण करवाया था।
जब भी अग्रोहा में काई नागरिक बसने आता था तो अग्रोहा निवासी उसे एक मुद्रा और एक ईट भेंट करते थे जिसे वह तत्काल एक लाख मुद्राओं का स्वामी बन जाता था और एक लाख ईंटों से उसका मकान बन जाता था, वर्षा, बाढ़, अकाल या व्यापार में घाटा लगने या किसी प्राकृतिक आपत्ति के आने पर भी यह प्रक्रिया पुनः दोहरायी जाती थी। उन्होंने वैश्य समुदाय को संगठित करने के लिए अपने राज्य में 18 यज्ञ किये और 18 यज्ञों के आधार पर 18 गोत्रों का प्रचलन कर अग्रवाल समाज के रूप में एक ऐसे समाज का संगठन किया। महाराजा अग्रसेन ने समाजवाद का प्रथम दर्शन दिया था एक मुद्रा और एक ईंट के रूप में इसलिये उन्हें समाजवाद का प्रथम पुरुष भी कहते हैं। 29 सितम्बर 1976 से अग्रोहा धाम को ” पंचम धाम ” स्वीकृत किया गया है।
सन 1976 में भारत सरकार ने महाराजा अग्रसेन के सम्मान में डाक टिकट जारी किया था। सिर्फ भारत सरकार ही नहीं
घाटा लगने या किसी प्राकृतिक आपत्ति के आने पर भी यह प्रक्रिया पुनः दोहरायी जाती थी। जनक पिता बनकर इन्होने नव समाज का निर्माण किया इनके ही विचारों का अनुशरण करते हुए आज अग्रवाल जाति की समाज में अलग विशेष पहचान है।